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कलाम
या है मरीज़-ए-'इश्क़ तू या है हकीम-ए-दर्द-मंदमरहम कहूँ या दर्द या दरमाँ कहूँ या क्या कहूँ
सादिक़ु अली शाह
कलाम
कहीं घाइल किए तीर-ए-निगाह-ए-नाज़नीं बन करकहीं वो ख़ून करते हैं अदा-ए-जाँ-सिताँ हो कर
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
चश्म-ए-मजनूँ के लिए दीदार-ए-लैला हर जगहवर्ना ग़ैरों के लिए सद पर्दा-ए-महमिल में है
ख़्वाजा हमीदुद्दीन अहमद
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं